सोमवार, 10 अगस्त 2009

गुलामनबी साहब....

गुलामनबी साहब कल टीवी पर आपकी उपस्थिति बड़ी अरुचिकर लग रही थी। खास कर स्वाइन फ्लू जैसी बीमारी को लेकर आपका एट्टीट्यूड। समझ नहीं आ रहा था कि आप लोगों को डरा रहे हैं या इस बीमारी से बचने के लिए सचेत कर रहे हैं। हर चीज का एक तरीका होता है, समय और नजाकत होती है। रिदा की मौत पर आपका बयान वाकई खेदजनक है। बिना पूरी जानकारी एकत्र किए आप ऐसे कैसे बयान देते हैं। फिर जब आपने अपने बयान पर खेद व्यक्त किया, तो आपके चेहरे को देखकर ऐसा कतई नहीं लग रहा था कि वाकई आपने जो कुछ पहले कहा उसका आपको खेद है। आपके चेहरे पर तो मुस्कराहट खेल रही थी। शायद आप राजनीतिज्ञ खुशी हो या गम, हँस तू हरदम की तर्ज पर जिंदगी जीते है। खासकर मामला जब आम लोगों की मौत का हो। आप लोगों पर कोई पर्क नहीं पड़ता। आप कहते हैं कि स्वाइन फ्लू की बाढ़ को आप का महकमा जहां तक रोक सकता है, रोका। लेकिन बाढ़ को ज्यादा देर तक नहीं रोका जा सकता था। सो बाढ़ आ गई, अब इसमें आपका या आपके विभाग का क्या दोष? गोया भारतीय स्वास्थ्य विभाग न हुआ, कोसी नदी का जर्जर बाँध हो गया, जो पानी के तेज बहाव को रोक पाने में असमर्थ हो गया और हजारों लोग काल के गाल में समा गए। ठीक है अगर आपकी ही बात मान लें, तो भी बाढ़ तट-बंध तोड़े, इसके पहले स्वास्थ्य विभाग को चेतावनी तो जारी करनी चाहिए थी। लेकिन यहां तो तट-बंध टूटने के बाद चेतावनी जारी की जा रही है। स्वाइन फ्लू से हुई छह मौतों के बाद, क्या आप जानते हैं कि लोग कितने भयभीत है, यहां तक कि डॉक्टर तक मरीज को छूने को तैयार नहीं हैं इस डर से कि कहीं उन्हें भी यह छुआ-छूत का रोग न लग जाए। ये बात झारखंड घाटशिला की है। मरीज सड़क पर पड़ा बुखार से तड़प रहा था। कुछ लोगों ने उसे घाटशिला के अस्पताल पहुँचाया लेकिन डॉक्टरों ने उसे छूने से भी इंकार कर दिया। और आप कहते हैं चिंता करने की कोई बात नहीं है। जिस देश में डायरिया, तपेदिक और मलेरिया से हर साल कई मौतें होती हों, वहां आम आदमी यह कैसे स्वीकार कर लें कि सरकार फटाफट किसी नए रोग से सबको सुरक्षा दे देगी।

-प्रतिभा वाजपेयी